Sunday, October 11, 2009
त्यौहार पर हावी बाज़ार
उल्लास, उमंग, उत्साह और उत्सव का दूसरा नाम भारतीय संस्कृति है। यहां हर पखवाडे कोई न कोई पर्व जनमानस को उल्लसित एवं उत्साहित किए रहता था लेकिन यह उत्साह एवं उल्लास अब देखने को नहीं मिलता। दिन दूना रात चौगुना बढ़ने वाली महंगाई ने आम आदमी की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया है। आम आदमी इस महंगाई से परेशान है। आज येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने का चलन आम हो गया है। ईमानदार लोगों के दिल से उठने वाली उमंगों की तरंगे, चिंता व संताप के भंवर में डूबने लगी है। साथ ही बदलने लगी है त्योहारों की प्रकृत्ति। आर्थिक युग की विभीषिका का सबसे त्रासद पहलू यह है कि आज बाजार त्यौहार पर हावी है।भावनाएं अब हाशिए पर हैं। रक्षा बंधन से लेकर करवा चौथ, वट सावित्री, दिवाली, होली आदि सभी तीज-त्योहार फीके पड़ गए हैं। बाजार के कारण उपहार संस्कृति अब गिफ्ट सिस्टम में बदल गई है। रिश्तों के बंधन अब गिफ्ट पैक के ऊपर बंधे लाल-पीले फीतों की तरह बेहद कमजोर हो गए हैं। चंद रोज बाद दिवाली का त्योहार है लेकिन उल्लास दिलों की जगह बाजार में है। अब त्यौहारों की जानकारी बड़े-बूढ़े नहीं बल्कि बाजार देता है। बढ़ते बाजारवाद से त्यौहारों की प्रकृति और परंपराएं भी बदलने लगी हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मिटटी के दीओं की जगह इलेक्ट्रॉनिक दीओं ने ले लिया है। इस पर्व पर लक्ष्मी पूजा का विधान है लेकिन आज के समय में लोग पूजा से ज्यादा पटाखों और मस्ती की तरफ़ ध्यान देते हैं।पूजा हाशिये पर धकेला जा रहा है। गिफ्ट देने की परम्परा चल परी है। यह केवल एक उदाहरण मात्र है। लगभग हर त्यौहार को बाजार द्वारा इसी तरह लक्ष्य बनाया जा रहा है। दिवाली पर मिठाइयां और कपड़े, होली पर तरह-तरह रंग और मुखौटे, नवरात्र में गरबा की धूम से बाजार सज जाता है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment