Sunday, October 11, 2009

अकेलापन सिगरेट की तरह ही है खतरनाक

दूसरे से अलग-थलग रहना न केवल हमें दुखी करता है, बल्कि यह हमारे शरीर और दिमाग दोनों के लिए नुकसानदेह भी है। एक अध्ययन में पाया गया है कि अकेलापन स्वास्थ्य के लिए उतना ही खतरनाक है जितना मोटापा या सिगरेट पीना। अकेलापन इंसान को न सिर्फ दुखी मानसिकता वाला बनाता है, बल्कि उसके दिमाग की दूसरी क्षमताओं पर भी बुरा असर डालता है। दरअसल अकेलेपन से ब्लड प्रेशर और तनाव बढ़ता है। विशेषज्ञों का कहना है, अकेलेपन से व्यक्ति की इच्छाशक्ति कम होती है और स्वस्थ जीवन जीने की उसकी क्षमता पर भी असर पड़ता है। अकेलापन न सिर्फ व्यक्ति के व्यवहार पर असर डालता है बल्कि इससे शरीर में खून के दौरे पर दबाव भी बढ़ जाता है। अकेलापन बीमारियों से लड़ने वाली हमारी क्षमता के लिए भी नुकसानदेह है और यह हमें डिप्रेशन की तरफ ले जाता है। अकेले रहने वाले व्यक्ति अक्सर पूरी तरह स्वस्थ नहीं होते। वे कम या फिर बिल्कुल भी कसरत नहीं करते। वे ज्यादा खाना पसंद करते हैं, जिससे उनके शरीर में बसा और शुगर की मात्रा अधिक हो जाती है। अकेलेपन से व्यक्ति की याददाश्त भी कमजोर हो जाती है।

त्यौहार पर हावी बाज़ार

उल्लास, उमंग, उत्साह और उत्सव का दूसरा नाम भारतीय संस्कृति है। यहां हर पखवाडे कोई न कोई पर्व जनमानस को उल्लसित एवं उत्साहित किए रहता था लेकिन यह उत्साह एवं उल्लास अब देखने को नहीं मिलता। दिन दूना रात चौगुना बढ़ने वाली महंगाई ने आम आदमी की खुशियों पर ग्रहण लगा दिया है। आम आदमी इस महंगाई से परेशान है। आज येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाने का चलन आम हो गया है। ईमानदार लोगों के दिल से उठने वाली उमंगों की तरंगे, चिंता व संताप के भंवर में डूबने लगी है। साथ ही बदलने लगी है त्योहारों की प्रकृत्ति। आर्थिक युग की विभीषिका का सबसे त्रासद पहलू यह है कि आज बाजार त्यौहार पर हावी है।भावनाएं अब हाशिए पर हैं। रक्षा बंधन से लेकर करवा चौथ, वट सावित्री, दिवाली, होली आदि सभी तीज-त्योहार फीके पड़ गए हैं। बाजार के कारण उपहार संस्कृति अब गिफ्ट सिस्टम में बदल गई है। रिश्तों के बंधन अब गिफ्ट पैक के ऊपर बंधे लाल-पीले फीतों की तरह बेहद कमजोर हो गए हैं। चंद रोज बाद दिवाली का त्योहार है लेकिन उल्लास दिलों की जगह बाजार में है। अब त्यौहारों की जानकारी बड़े-बूढ़े नहीं बल्कि बाजार देता है। बढ़ते बाजारवाद से त्यौहारों की प्रकृति और परंपराएं भी बदलने लगी हैं। जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण मिटटी के दीओं की जगह इलेक्ट्रॉनिक दीओं ने ले लिया है। इस पर्व पर लक्ष्मी पूजा का विधान है लेकिन आज के समय में लोग पूजा से ज्यादा पटाखों और मस्ती की तरफ़ ध्यान देते हैं।पूजा हाशिये पर धकेला जा रहा है। गिफ्ट देने की परम्परा चल परी है। यह केवल एक उदाहरण मात्र है। लगभग हर त्यौहार को बाजार द्वारा इसी तरह लक्ष्य बनाया जा रहा है। दिवाली पर मिठाइयां और कपड़े, होली पर तरह-तरह रंग और मुखौटे, नवरात्र में गरबा की धूम से बाजार सज जाता है।